Categories

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

08/06/2025

रायगढ़ जिले में कोयला खदानों के लिए पांच हजार हेक्टेयर जंगल होंगे बर्बाद पढ़िए पूरी ख़बर ….

Spread the love

रायगढ़। आज विश्व पर्यावरण दिवस है। इस दिन सेमीनार, संगोष्ठी, शपथ, पौधरोपण के अलावा ऐसा कोई ठोस काम नहीं होता, जो इस दिन को सार्थक कर सके। रायगढ़ जिले की जो दुर्दशा आने वाले सालों में होनी है, उसके पहले पर्यावरण बचाने के विकल्पों पर ठोस काम होना जरूरी है। अगले 5-7 सालों में जिले के 5000 हेक्टेयर जंगल कोयला खदानों के लिए बर्बाद कर दिए जाएंगे। इतने ही क्षेत्रफल में घना जंगल बनाना संभव ही नहीं है। कोयले से भरपूर रायगढ़ जिला इसकी बड़ी कीमत भी चुका रहा है। हर साल कुछ नए कोल ब्लॉक आवंटित होते हैं और जमीनें अधिग्रहित की जाती हैं।

कॉरपोरेट सेक्टर को आवंटन के बाद निजी, सरकारी और वन भूमि पर खनन शुरू होता है। आने वाले पांच सालों में करीब 25 नए कोल ब्लॉक नीलामी के बाद आवंटित हो जाएंगे। अभी 16 खदानें उत्पादनरत हैं। इन 16 खदानों में करीब 4000 हेक्टेयर वन भूमि दी जा चुकी है। मतलब इतने जंगल अब प्राइवेट और सरकारी कंपनियों के पास हैं। जंगलों को काटकर कोयला खनन किया जा रहा है। आने वाले सालों में 25 नई खदानें अस्तित्व में आ जाएंगी। इनमें से कुछ का आवंटन हो चुका है। बाकी को चिह्नांकित करने के बाद एक-एक कर नीलाम किया जा रहा है। केंद्र और राज्य सरकार को भरपूर राजस्व मिल रहा है।

 

रायगढ़ जिले को डीएमएफ के जरिए उपकृत किया जा रहा है। लेकिन उन जंगलों का कोई विकल्प नहीं खोजा जा रहा है जो बर्बाद हो रहे हैं। 25 नई माइंस में जितनरी वन भूमि ली जाएगी, वह करीब 5065 हे. है। मतलब करीब साढ़े 12 हजार एकड़। इतना जंगल रायगढ़ जिले के नक्शे से दस साल बाद गायब हो जाएगा। ये पूरा जंगल खरसिया, तमनार, घरघोड़ा और धरमजयगढ़ ब्लॉक में है। इस जंगल के बदले उन्हीं तहसीलों में दूसरी जमीनों पर घना जंगल उगेगा तो ही पर्यावरण संतुलन बना रहेगा। अन्यथा आने वाले दिनों में ये चारों तहसील बंजर दिखेंगी। केवल कोयले की खदानें और उनको ढोने वाली गाडिय़ां ही सडक़ों पर नजर आएंगी।

इन खदानों का होगा आवंटन

 

अभी ऐसी कई माइंस हैं जिनका आवंटन हुआ है लेकिन उत्पादन प्रारंभ नहीं हुआ है। बर्रा, शेरबंद, भालुमूड़ा-बनई, दुर्गापुर टू तराईमार-दुर्गापुर टू सरिया, बायसी, तलाईपाली, गारे पेलमा की 11 माइंस, बरौद, जामपाली, बिजारी, छाल में कुछ में उत्पादन हो रहा है और कुछ में प्रक्रिया चल रही है। इसके अलावा गोढ़ी महलोई के चार ब्लॉक, वेस्ट ऑफ छाल, टेरम, झारपालम टांगरघाट, नवागांव वेस्ट, नवागांव ईस्ट, जरेकेला समेत 15 ब्लॉक हैं जो नीलामी के लिए तैयार हैं।

 

पौधरोपण की हकीकत सबको पता है

 

जंगलों के नष्ट होने का आंकड़ा हेक्टेयर में होता है। हरियर छत्तीसगढ़ के नाम पर पौधरोपण में पौधों की गिनती होती है। इसमें भी कितने जीवित रहते हैं और कितने मर जाते हैं, इसका रिकॉर्ड संदेहास्पद है। हजारों एकड़ जंगल नष्ट कर रोड किनारे या नदी किनारे चंद हजार पेड़ लगाकर कैसे भरपाई हो सकती है। पिछले 25 सालों में कितने एकड़ जंगल तैयार किए गए हैं, इसकी कोई जानकारी नहीं है। जब तक जंगल के बदले जंगल तैयार नहीं होंगे तब तक पर्यावरण संतुलन और संरक्षण नहीं हो सकता।


Spread the love